क्या आपने कभी सोचा है कि कॉल सेंटर के कर्मचारियों की मेहनत को कितनी अनदेखी की जाती है? ये लोग न केवल कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं, बल्कि अब उन्हें यह भी सहना पड़ रहा है कि ग्राहक उन्हें रोबोट समझते हैं। हाल ही में, ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डाला है, जिसमें बताया गया है कि AI तकनीक के बढ़ते प्रचलन के चलते ग्राहक अब यह संदेह करने लगे हैं कि वे जिनसे बात कर रहे हैं, वो असली इंसान हैं या एक चैटबॉट।

इससे पहले कि हम इस समस्या के गहरे में जाएं, आइए आपको बताते हैं कि यह स्थिति कितनी चिंता जनक है। जेसिका लिंडसे, एक कॉल सेंटर एजेंट हैं, जो कॉनसेंट्रिक्स में काम करती हैं और अक्सर एंटरप्राइज ग्राहकों के लिए कॉल लेती हैं। उन्हें ग्राहकों द्वारा यह पूछे जाने का सामना करना पड़ता है कि क्या वे एक AI हैं।

जेसिका बताती हैं कि उन्हें अक्सर चिल्लाते हुए ग्राहकों का सामना करना पड़ता है, जो उनसे कहते हैं, “एक असली इंसान से बात करवाओ!” इस स्थिति में, जेसिका अपनी मानवता साबित करने के लिए हंसने या खांसने की कोशिश करती हैं, लेकिन यह अक्सर उल्टा असर डालता है।

“वे बस मुझ पर चिल्लाते हैं और कॉल काट देते हैं,” जेसिका कहती हैं। यह अनुभव उनके लिए भावनात्मक रूप से कठिन है। एक सुबह, जब उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि वे एक असली इंसान हैं, तो उन्हें उस अपमान का सामना करना पड़ा। यह एक सामान्य कार्य का हिस्सा नहीं होना चाहिए।

लेकिन जेसिका अकेली नहीं हैं। सेठ, जो एक और कॉल सेंटर कर्मचारी हैं, बताते हैं कि हर हफ्ते उन्हें यह सवाल पूछा जाता है कि क्या वह एक AI हैं। एक ग्राहक ने 20 मिनट तक सेठ को इस बात के लिए ताना मारा कि क्या वह एक रोबोट हैं।

सेठ का मानना है कि समस्या केवल AI में नहीं है, बल्कि उनके नियोक्ता की नीति में भी है। नियोक्ता उनसे एक खास स्क्रिप्ट का पालन करने के लिए दबाव डालते हैं, ताकि वे अपनी नौकरी न खो दें। यह प्रथा 90 के दशक में शुरू हुई थी, जब तकनीक ने नियोक्ताओं को कर्मचारियों की हर हरकत देखने की अनुमति दी।

हालांकि, आज के समय में जब AI वॉयस एजेंट का उपयोग किया जा रहा है, तो ये और अधिक कठिन हो गया है। एक अनुमान के अनुसार, AI वॉयस एजेंट बाजार 2031 तक लगभग $50 बिलियन का उद्योग बन जाएगा।

इस बात को ध्यान में रखते हुए, निर ईसिकोविट्स, जो कि एक दर्शनशास्त्री हैं, ने कहा है कि यह पहचानना कि हम मानव हैं या नहीं, धीरे-धीरे ख़त्म हो जाएगा। यह सब हमारे अस्तित्व की अनोखी पहचान को खतरे में डाल सकता है।