क्या आपने कभी सोचा है कि एक पुरानी संस्था कैसे एक राष्ट्र के राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित कर सकती है? हाल ही में, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूनिस्को से बाहर निकलने का एक विवादास्पद फैसला लिया, जिसमें उन्होंने इसे 'वोक, विभाजनकारी सांस्कृतिक और सामाजिक कारणों' का समर्थन करने के लिए जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना है कि यह कदम अमेरिका के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है।

ट्रम्प ने यूनिस्को से बाहर निकलने का आदेश इस साल के शुरू में दिया था, जब उन्होंने संगठन की नीतियों की समीक्षा करने का निर्देश दिया था, खासकर यह देखने के लिए कि क्या इसमें कोई 'एंटी-सेमिटिज़्म या एंटी-इज़राइल' भावना है। वह यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि अमेरिका किसी भी ऐसी संस्था का हिस्सा न बने जो उनके विचारों से मेल न खाती हो, जिसमें DEI (विविधता, समानता और समावेश) नीतियाँ शामिल हैं।

व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने कहा कि यूनिस्को की नीतियों में चीन का प्रभाव दिखाई दे रहा है, जो बीजिंग के हितों को बढ़ावा देने में सहायक है। ट्रम्प ने टिप्पणी की कि राष्ट्रपति के रूप में उनकी प्राथमिकता हमेशा अमेरिका को पहले रखना है, और यह सुनिश्चित करना कि अमेरिका की सदस्यता केवल उन अंतरराष्ट्रीय संगठनों में हो जो उनके राष्ट्रीय हितों के अनुकूल हों।

आलोचकों ने ट्रम्प के फैसले की आलोचना की है, यह कहते हुए कि यूनिस्को ने हाल ही में 'एंटी-रेसिज्म टूलकिट' और 'Transforming MEN’talities' अभियान जैसे पहलें शुरू की हैं, जो उनकी चिंताओं का मुख्य कारण बन गईं। ये पहलें सदस्य देशों को 'एंटी-रेसिस्ट' नीतियों को अपनाने और सामाजिक न्याय के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती हैं।

यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने यूनिस्को से बाहर निकलने का निर्णय लिया है। पहले राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 1983 में इसी कारण से अमेरिका को यूनिस्को से बाहर किया था, यह कहते हुए कि संगठन ने हर मुद्दे को अत्यधिक राजनीतिक बना दिया है और मुक्त समाजों के प्रति स्पष्ट शत्रुता दिखाई है।