क्या आप जानते हैं कि Starlink उपग्रहों के बढ़ते जाल ने खगोल विज्ञान में एक नया संकट पैदा कर दिया है? हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि ये उपग्रह दुनिया के सबसे बड़े रेडियो टेलीस्कोप के काम में बाधा डाल रहे हैं, जो ऑस्ट्रेलिया के मुर्चिसन में बनाया जा रहा है। यह इस बात का संकेत है कि इंटरनेट की दुनिया और खगोल विज्ञान के बीच एक बड़ा टकराव हो रहा है।

क्या आपको याद है जब हमने रात के आसमान में तारे गिनने का सपना देखा था? उस सपने में अब एक बड़ा व्यवधान आ गया है। Starlink, जो कि एक वैश्विक उपग्रह इंटरनेट सेवा है, अब अंतरिक्ष में उपग्रहों की संख्या को बढ़ा रहा है और इसके दुष्परिणाम खगोल विज्ञान पर पड़ रहे हैं। Curtin University के पीएचडी शोधकर्ता डायलन ग्रिग ने अपने अध्ययन में 73 मिलियन रात के आसमान की छवियाँ एकत्र की हैं, जिनमें यह दिखाया गया है कि ये उपग्रह रेडियो खगोल विज्ञान को कैसे प्रभावित कर रहे हैं।

ग्रिग ने बताया कि उन्होंने लगभग तीन सालों तक 50—350 मेगाहर्ट्ज के फ्रीक्वेंसी रेंज में रिसर्च की और हर दो सेकंड में आसमान की एक तस्वीर ली। नतीजे चौंकाने वाले थे: अधिकांश उपग्रह Starlink के थे और वे अपने ऑनबोर्ड इलेक्ट्रॉनिक्स से रेडियो शोर उत्पन्न कर रहे थे। यह शोर इंटरनेट के लिए डिजाइन की गई फ्रीक्वेंसी से अलग था, लेकिन इसने रेडियो खगोल विज्ञान में गंभीर बाधाएँ डाल दी हैं।

जब SKA-Low टेलीस्कोप का निर्माण 2030 में पूरा होगा, तो यह अब तक का सबसे बड़ा रेडियो टेलीस्कोप होगा। लेकिन ग्रिग ने चेतावनी दी है कि ये 'बहुत शोर' करने वाले उपग्रह इसे काम करने में बहुत मुश्किल बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि, "यह एक ग्रे एरिया है; जो वे कर रहे हैं वह कानूनी है, लेकिन यह रेडियो खगोल विज्ञान के लिए बाधा है।"

हालांकि, SKA-Low परियोजना के स्पेक्ट्रम प्रबंधक फ़ेडेरिको डी व्रुने ने कहा कि इस अध्ययन के परिणाम SKAO के पिछले अध्ययनों के अनुरूप हैं। उनका मानना है कि उपग्रहों से उत्पन्न अवांछित संकेतों के प्रभाव को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।

दुनिया भर में मानव निर्मित वस्तुओं की संख्या आसमान में बढ़ती जा रही है। पिछले साल रिकॉर्ड संख्या में उपग्रह लॉन्च किए गए थे, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई है।

सभी चीजों के बावजूद, डी व्रुने ने आश्वासन दिया कि SKA-Low का डिज़ाइन इसे इस शोर से निपटने में सक्षम बनाएगा। अब हम यह देख सकते हैं कि इस अध्ययन का क्या प्रभाव पड़ेगा, और यह खगोल विज्ञान के भविष्य को कैसे आकार देगा।